पारसनाथ मंदिर में चल रहा शास्त्रों का स्वाध्याय, बसु – विज्ञा- समिति

करतार सिंह पौनिया ब्यूरो चीफ फिरोजाबाद :

टूण्डला – पारसनाथ मंदिर में चल रहा शास्त्रों का स्वाध्याय, बसु – विज्ञा- समिति, प.पू.उपाध्याय श्री विज्ञानंद महाराज, मुनि श्री पुण्यानंद मुनि श्री धैर्यानंद जी का चातुर्मास चल रहा है सुबह प्रवचन देते हुए उपाध्याय श्री ने कहा कि जो यथार्थ में गुरु है उन गुरुओं के प्रति मूर्खता नहि करनी चाहिए सच्चे गुरू को पाने का साधन देव शास्त्र गुरु है जो साधु परिग्रह के साधन में लिप्त है कषाय मंद का उनके जीवन में कोई काम नहि है अगर साधु में परिग्रह होगा तो आरंभ होगा, ओर चारित्र में निरंतर हिंसा की प्रवत्ति रहती है राग द्वेष के चक्कर में वो फसे हुए है उन्हे अपना खयाल नहि बस्तु सुख का ज्ञान नहि है जो पापो का खण्डन करे वो पापी है, जो अंदर कुछ है दिखा कुछ और रहा है वो भी पाखंड की श्रेणी में आता है आचार्य भगवन कहते हैं जो राग द्वेष से रहित है जो वीतरागी है वो सच्चे साधु की पहचान को दर्शाता है, वो ही वीतरागी प्रभु है, आपके करण आपकी भाव आपके परिणाम चरितार्थ है वो ही सच्चे सम्यक दृष्टि है, अगर आप मिथ्यादृष्टि भी हो तो वीतरागि प्रभु की मुद्रा को देखकर आपके परिणाम सम्यक दृष्टि में परिवर्तित हो सकते हैं,

आचार्य विद्या सागर महाराज जी कहते थे संसार में स्थान इन लोगो को देना चाहिए पर इन लोगो के कारण आपकी चर्या में बदलाव न हो ऐसे नेताओ को स्थान दो धर्मार्थ को स्थान दो, दानदाता को स्थान दो, गुरु को स्थान दो बाकी संसारी जीवो को उपदेश दो, पूजा पढ़ते हुए लीनता आती है तल्लीनता आती है जब आप मन्दिर में हो तो भक्ति करते वक्त उत्साह होना चाहिए मन प्रफुल्लित और आत्मा के भाव निर्मल होने चाहिएं, सम्यक दृष्टि को हम अंतरात्मा कहते हैं आत्मा और शरीर में बहुत भेद है,अहंकार आठ प्रकार के होते हैं, पूजा का अहंकार, ज्ञान का अहंकार, जाति का अहंकार, कुल का अहंकार,बल का अहंकार, तप का अहंकार, शरीर का अहंकार, ऋद्धि का अहंकार, इन आठ अहंकार को कभी नहि करना चाहिए मेरी आत्मा स्वतंत्र है सम्यक दृष्टि कभी अहंकार नहि करता है सम्यक दृष्टि के असंख्यात भेद है, आपने पाप को पाप मान लिया बुराई को बुराई मान लिया आप अगर अपने पाप कर्मों को मान रहे हैं तो भी आप सम्यक दृष्टि है, कभी कभी आदमी अपने ज्ञान के अहंकार में साधुओं की भी अवेहलना कर देता है उन ज्ञानियों की आजतक समाधि नही हुई, यह कर्म ऐसी बला है यह अहंकार के कारण जीवन को ख़त्म करता है तीन निर्बलता बताई गईं हैं योग की निर्बलता, उपयोग की निर्बलता, संयोग की निर्बलता , तपस्या से तेज आता है

उपवास करने से शरीर में इतना आनंद आता है पर उपवास के तरीके से उपवास हो, अपने में लीन हो जाना, बाहर का छोड़ दिया अंदर का भी छोड़ दो यही असली उपवास है, इस मौके पर चातुर्मास कमेटी अध्यक्ष बसन्त जैन, कमलेश जैन कोल्ड, अनिल जैन राजू, सम्यक जैन, अंकित जैन, गोपाल जैन, महेश जैन, दिनेश जैन, सुमन प्रकाश जैन, अनिल जैंडल, प्रिंस जैन, राजीव जैन, क्षेत्रीय सह संयोजक भाजपा अल्प संख्यक मोर्चा सचिन जैन, सुमित जैन गोलू निखिल समस्त जैन समाज मौजूद रहा।

Leave a Reply

error: Content is protected !!