जाति के नाम पर राजनीति बंद! रामभद्राचार्य महाराज ने राजनेताओं को दी कड़ी चुनौती!

जयपुर के विद्याधर नगर स्टेडियम में श्री बालाजी गौशाला संस्थान और विद्याधर नगर स्टेडियम आयोजन समिति द्वारा आयोजित श्रीराम कथा के सातवें दिन बुधवार को प्रसिद्ध कथावाचक रामभद्राचार्य महाराज ने राम-भरत मिलाप का प्रसंग सुनाया। कथा के दौरान उन्होंने समाज में फैली जातिगत असमानताओं और आरक्षण व्यवस्था पर अपने विचार व्यक्त किए, जो आजकल चर्चा का विषय बने हुए हैं। रामभद्राचार्य महाराज ने वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में जातिगत विभाजन पर कटाक्ष करते हुए कहा कि आज के राजनेता समाज को छोटी-छोटी जातियों में बांटने का काम कर रहे हैं। उन्होंने सरकारों को चुनौती दी कि यदि उनमें साहस है, तो जाति आधारित आरक्षण को समाप्त करें और इसे आर्थिक आधार पर लागू करें।

रामभद्राचार्य महाराज का मानना है कि यदि आरक्षण को जाति के बजाय आर्थिक स्थिति के आधार पर दिया जाए, तो जातिगत भेदभाव धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत में सभी हिंदू एक समान हैं, चाहे वह किसी भी जाति के हों। उन्होंने यह भी कहा कि आर्थिक आधार पर आरक्षण लागू होने के बाद समाज में एकता और भाईचारा बढ़ेगा और जातिगत संघर्ष भी अपने आप समाप्त हो जाएगा। उनके अनुसार, जातिगत भेदभाव और गृह युद्ध जैसी स्थितियां सिर्फ एक-दूसरे से दूरी बढ़ाने का कारण बनती हैं, और आर्थिक समानता से इस समस्या का हल हो सकता है।

आरक्षण और प्रतिभा पर चर्चा करते हुए रामभद्राचार्य महाराज ने कहा कि आरक्षण का आधार केवल आर्थिक स्थिति होनी चाहिए, न कि जाति। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि एक सवर्ण बालक, जो परीक्षा में शत-प्रतिशत अंक प्राप्त करता है, उसे छोटी-मोटी नौकरी करने के लिए मजबूर किया जाता है। वहीं दूसरी ओर, एक अनुसूचित जाति का बालक कम अंक प्राप्त करके भी बड़े पदों पर आसीन हो जाता है। महाराज ने यह सवाल उठाया कि क्या यह व्यवस्था समाज में योग्य और प्रतिभाशाली लोगों के साथ अन्याय नहीं है? उन्होंने कहा कि आरक्षण का यह प्रकार प्रतिभाओं को कुचल देता है, और इसे बंद करना ही समाज के लिए सही होगा।

रामभद्राचार्य महाराज ने हिंदू समाज में जातिगत भेदभाव और अस्पृश्यता पर भी अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि हिंदू समाज में कोई अछूत नहीं है और चारों वर्ण भगवान की रचना हैं। उनके अनुसार, ब्राह्मण भगवान का मुख हैं, क्षत्रिय उनकी भुजा, वैश्य उनकी जांघें, और शूद्र उनके चरण हैं। उन्होंने सवाल किया कि यदि चरण को हमेशा पूजनीय माना गया है और हमें प्रणाम करते समय अपने माथे को चरणों से लगाते हैं, तो शूद्र कैसे अपवित्र हो सकते हैं। महाराज ने समाज में फैले इस मिथक को तोड़ने की बात की और कहा कि यह धारणा सिर्फ अज्ञानता और वेदों के ज्ञान के अभाव के कारण फैली है।

उन्होंने पवित्रता और चरणों की महत्ता का उदाहरण देते हुए कहा कि जिस तरह भगवान के चरणों से गंगा नदी प्रवाहित हुई और सबसे पवित्र मानी जाती है, उसी प्रकार भगवान के चरण से प्रकट होकर शूद्र अछूत कैसे हो सकते हैं। उन्होंने समाज के पुरोहितों और कर्मकांडियों को इस पर विचार करने के लिए भी प्रेरित किया।

रामभद्राचार्य महाराज ने संत रामानंदाचार्य जी का उदाहरण देते हुए बताया कि उन्होंने अपने समय में लगभग 25 लाख हिंदुओं को जागरूक कर जातिगत बंधनों से मुक्त करने का कार्य किया था। स्वयं को रामानंदाचार्य परंपरा का चतुर्थ आचार्य बताते हुए उन्होंने इस दिशा में अपनी प्रतिबद्धता जताई। उन्होंने कहा कि वे इस दिशा में हर संभव प्रयास करेंगे, जिससे भारत में 80 प्रतिशत हिंदू एकजुट होकर एक समानता के आधार पर जीवन व्यतीत कर सकें। महाराज के अनुसार, जब समाज में बहुसंख्यक हिंदू होंगे और जातिगत बंधन खत्म होंगे, तभी देश में स्थिरता और शांति स्थापित हो सकेगी।

रामभद्राचार्य महाराज के इन विचारों ने समाज के कई ज्वलंत मुद्दों पर गहरी सोचने के लिए प्रेरित किया, जिसमें जातिगत भेदभाव, आरक्षण की प्रासंगिकता और एकता के महत्व जैसे विषय शामिल हैं।

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