डॉ. मनमोहन सिंह: भारत के आर्थिक उदारीकरण के शिल्पकार और विद्वान नेता

लेख – डॉ मेदिनी प्रसाद रॉय, कंसल्टिंग एडिटर, न्यूज़लाइन नेटवर्क :

डॉ. मनमोहन सिंह का नाम भारत के इतिहास में एक ऐसे व्यक्तित्व के रूप में लिया जाता है, जिन्होंने अपनी विद्वता, ईमानदारी और कुशल नेतृत्व से देश को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। वे न केवल एक अर्थशास्त्री थे, बल्कि एक अद्वितीय नेता और देशभक्त भी थे। उनका जीवन संघर्ष, सफलता और सेवा का प्रेरक उदाहरण है।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

डॉ. मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितंबर 1932 को अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत (अब पाकिस्तान) के गाह गांव में हुआ था। उनका परिवार साधारण जीवन व्यतीत करता था, लेकिन शिक्षा के प्रति उनका झुकाव बचपन से ही था।

  1. बी.ए. (ऑनर्स) इन इकोनॉमिक्स – 1952, पंजाब विश्वविद्यालय
  2. एम.ए. (प्रथम श्रेणी) इन इकोनॉमिक्स – 1954, पंजाब विश्वविद्यालय
  3. ऑनर्स डिग्री इन इकोनॉमिक्स – 1957, सेंट जॉन्स कॉलेज, यूनिवर्सिटी ऑफ कैम्ब्रिज
  4. डी. फिल. इन इकोनॉमिक्स – 1962, नफील्ड कॉलेज, यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड

उनकी शिक्षा ने न केवल उन्हें एक विद्वान बनाया, बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था को नए आयाम देने का मार्ग भी प्रशस्त किया। उनकी शिक्षा ने उन्हें न केवल भारत बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी प्रतिष्ठा दिलाई। कैम्ब्रिज और ऑक्सफोर्ड जैसे संस्थानों में पढ़ाई ने उनकी सोच को वैश्विक दृष्टिकोण दिया।

शैक्षणिक करियर: एक आदर्श शिक्षक और विद्वान

शिक्षा के क्षेत्र में उनका योगदान अतुलनीय रहा।

  • वरिष्ठ व्याख्याता (1957–1959)
  • रीडर (1959–1963)
  • प्रोफेसर (1963–1965)
  • अंतरराष्ट्रीय व्यापार के प्रोफेसर (1969–1971)
  • डेल्ही स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में मानद प्रोफेसर (1966)
  • जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली में मानद प्रोफेसर (1976)

उनकी शैक्षणिक यात्रा ने हजारों छात्रों को प्रेरित किया और उन्होंने अंतरराष्ट्रीय व्यापार और आर्थिक नीतियों पर गहरी विशेषज्ञता विकसित की।

राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सेवाएं

उनका करियर शिक्षा के दायरे से बाहर निकलकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी फैल गया।

  • मुख्य, ट्रेड फाइनेंसिंग सेक्शन, UNCTAD, न्यूयॉर्क (1966)
  • आर्थिक मामलों के अधिकारी (1966)
  • भारत के विदेश व्यापार मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार (1971–1972)
  • मुख्य आर्थिक सलाहकार, वित्त मंत्रालय, भारत (1972–1976)

वित्तीय संस्थानों में नेतृत्व

उन्होंने कई प्रतिष्ठित वित्तीय संस्थानों में अहम भूमिकाएं निभाईं:

  • भारतीय रिजर्व बैंक के निदेशक (1976–1980)
  • औद्योगिक विकास बैंक ऑफ इंडिया के निदेशक (1976–1980)
  • एशियन डेवलपमेंट बैंक, मनीला के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के सदस्य
  • भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर (1982–1985)

नीति निर्माण और प्रशासनिक भूमिकाएं

वे भारतीय योजना आयोग और सरकार के विभिन्न विभागों के साथ जुड़े रहे:

  • योजना आयोग के उपाध्यक्ष (1985–1987)
  • साउथ कमीशन, जिनेवा के महासचिव (1987–1990)
  • प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार (1990–1991)
  • विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के अध्यक्ष (15 मार्च 1991 – 20 जून 1991)

राजनीतिक जीवन: भारत का मार्गदर्शन

उनका राजनीतिक जीवन भारत की दिशा और दशा बदलने में अहम भूमिका निभाने वाला रहा।

  • भारत के वित्त मंत्री (21 जून 1991 – 15 मई 1996): अपने वित्त मंत्री कार्यकाल के दौरान उन्होंने आर्थिक सुधारों की आधारशिला रखी, जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक मंच पर प्रतिस्पर्धी बनाया।
  • राज्यसभा में सांसद (1991–2019): उन्होंने संसद में हमेशा देशहित से जुड़े मुद्दों को प्राथमिकता दी।
  • राज्यसभा में विपक्ष के नेता (1998–2004): उन्होंने विपक्ष की जिम्मेदारी निभाते हुए संतुलित और रचनात्मक राजनीति का उदाहरण प्रस्तुत किया।
  • भारत के प्रधानमंत्री (22 मई 2004 – 26 मई 2014): उनके प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान भारत ने आर्थिक विकास, विज्ञान, और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में बड़ी उपलब्धियां हासिल कीं।

विशेष योगदान और विरासत

उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण की नीति थी। उन्होंने देश को आर्थिक संकट से उबारने और विकास के पथ पर ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उनकी विनम्रता, विद्वत्ता, और कुशल नेतृत्व ने उन्हें भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में एक सम्मानित व्यक्तित्व बना दिया।

उनका जीवन प्रेरणा, ज्ञान और सेवा का प्रतीक था। उनकी शिक्षा, प्रशासनिक अनुभव, और राजनीतिक सूझबूझ ने भारत को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उनका जाना न केवल भारत के लिए, बल्कि पूरे विश्व के लिए अपूरणीय क्षति है। उनके विचार और कार्य हमेशा हमारे देश के विकास और प्रगति के मार्गदर्शक बने रहेंगे।

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